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युवाओं बेरोजगारों, दलित, पिछड़ों, आदिवासियों को वित्त मंत्री ने दिखाया ढेंगा…

वित्त मंत्री ने कृषि संसदीय समिति की सभी शिफारिशों को नकारा:-एड विश्वजीत रतौनिया...

युवाओं बेरोजगारों, दलित, पिछड़ों, आदिवासियों को वित्त मंत्री ने दिखाया ढेंगा…

बजट के बाद किसानों की वास्तविक आमदनी, दोगुनी नही आधी रह जाएगी…

वित्त मंत्री ने कृषि संसदीय समिति की सभी शिफारिशों को नकारा:-एड विश्वजीत रतौनिया…

गिर्राज रजक, ग्वालियर,

सोशल जस्टिस एक्टिविस्ट “एड विश्वजीत रतौनिया” ने बजट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि किसानों दलित पिछड़ों आदिवासियों युवा बेरोजगारों को वित्त मंत्री ने ढेंगा दिखाया है…

भारत सरकार ने जिस तरह 9 दिसंबर 2021 को संयुक्त किसान मोर्चा को आश्वासन देकर धोखाधड़ी की थी उसी तरह संसद की कृषि संसदीय समिति की चारों सिफारिशों को एक तरफ से नकार दिया है। फसल बीमा के लिए पिछली बार 14, 600 करोड़ रुपए दिए थे उसे घटाकर 12,242 करोड़ कर दिया है। सरकार ने किसान सम्मान निधि, कर्ज माफी, एमएसपी पर खरीद की कानूनी गारंटी पर कोई प्रावधान नहीं किया है…

देश में 85 परसेंट एससी एसटी ओबीसी की आबादी है हमेशा से मांग रही है बजट का 850परसेंट हिस्सा sc st obc के लिए आरक्षित किया जाना चाहिए लेकिन सरकार ने इस बजट में भी कोई ऐसा प्रावधान नहीं किया है…

सरकार आयकर की सीमा 12 लाख 75 हजार करने को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही है लेकिन वास्तविकता यह है कि देश की 142 करोड़ की आबादी में से केवल 55 लाख परिवार ही ऐसे हैं जिनकी आमदनी एक लाख रुपए प्रति माह से अधिक है जबकि किसान परिवार की औसत आय 150 रुपए प्रतिदिन (औसतन 5सदस्य) से कम है। 2024 का न्यूनतम वेतन भी 178 रुपए यानी 5,340 रूपये प्रति माह है। सरकार को न्यूनतम मजदूरी दोगुनी करने और किसानों की आमदनी दोगुनी करने का प्रबंध करना था लेकिन उसने केवल देश की 2% आबादी को ही आयकर में छूट दी है। 98 %आबादी जिसमें से 50% किसान है जिनकी जीडीपी में भागीदारी 20 % है उनको पूरी तरह नकार दिया है…

उन्होंने कहा कि किसानों द्वारा 2017 से लगातार समर्थन मूल्य (सी 2+50%) पर खरीद के लिए आंदोलन चलाया जा रहा है लेकिन सरकार ने खरीद की कानूनी गारंटी और कर्जा मुक्ति को लेकर बजट में कोई आवंटन नही किया है। किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए स्वामीनाथन कमेटी की सिफ़ारिशों को लागू करने की किसान संगठनों द्वारा कई बार मांग उठाई गई लेकिन स्वामीनाथन कमेटी की सिफ़ारिशें अभी तक लागू नहीं की गई है। नरेंद्र मोदी द्वारा सरकार संभालने के बाद से आज तक डेढ़ लाख किसानों द्वारा आत्महत्या की जा चुकी है लेकिन कृषि अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए बजट में किसानों की आबादी के अनुरूप बजट का आवंटन करना तो दूर 2019 में किसानों के लिए किए गए 5.44 प्रतिशत आवंटन को भी 2% घटा दिया गया है।

एड विश्वजीत रतौनिया ने कहा यह बजट किसानों को और अधिक कर्जदार बनाएगा, इसके चलते आत्महत्याएं बढ़ेगी। सरकार ने कार्पोरेट का 16 लाख करोड़ रुपया माफ किया लेकिन किसानों को 16 हजार करोड़ की कर्ज माफी की घोषणा वित्त मंत्री ने नहीं की।

सरकार ने दालों पर आत्मनिर्भरता के लिए 6 वर्ष और कपास के लिए 5 वर्ष की घोषणा की है जिसका अर्थ है कि जब तक मोदी सरकार रहेगी तब तक देश दलहनों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर नही हो सकेगा।

वित्त मंत्री ने जब कृषि क्षेत्र की बात की तब उनका केंद्र उत्पादकता बढ़ाना था जबकि मुद्दा किसानों द्वारा किए गए उत्पादन के सही दाम तथा घाटे की खेती को लाभकारी बनाना होना चाहिए था। 142 करोड़ आबादी के देश में 10 हजार एमबीबीएस की सीट बढ़ाना, 10,000 तकनीकी के छात्रों की छात्रवृत्तियां बढ़ाना, 200 कैंसर सेंटर खोलना, 36 दवाईयों को कर मुक्त करना देश के नागरिकों की आवश्यकताओं के हिसाब से ऊंट के मुंह में जीरा कहा जा सकता है।

सरकार ने बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा 74% से बढ़ाकर 100% कर दी है जिसका मतलब है कि बीमा क्षेत्र का पूरी तरह निजीकरण कर दिया है। सरकार ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस क्षेत्र के लिए 500 करोड़ रुपए ही आवंटित किया है जबकि देश की रोजगार करने वाली आबादी को यह सबसे बड़ा खतरा पैदा हो रहा है। 50 लाख करोड़ के बजट में सरकार 14.2 लाख करोड़ रुपये बाजार से कर्जा लेगी । सरकार चाहती तो संपत्ति कर और उत्तराधिकार कर तीन प्रतिशत बढ़ाकर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगारोन्मुखी योजनाओं के लिए संसाधन जुटा सकती थी।

अचरज की बात यह है कि आजादी के 76 वर्ष बाद भी सरकार साफ पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं करा सकी है तथा साफ पानी उपलब्ध कराने के लिए उसने और तीन वर्षों का समय मांगा है। वस्तुस्थिति यह है कि सरकार ने 80% ग्रामीण आबादी को जो जल नल जल योजना से पानी देने का आंकड़ा पेश किया है वह पूरी तरह सच्चाई से परे है। वास्तविकता यह है कि 25% से अधिक नल जल योजनाएं ठप्प पड़ी है, क्योंकि दुरुस्त करने के लिए सरकार के पास पैसा नहीं है। सरकार की घोषणा से स्पष्ट हो गया है कि अब पीने का पानी देने की योजनाओं का निजीकरण करने के लिए सरकार आमादा है।

सरकार ने किसानों से आमदनी दोगुनी करने का वायदा किया था लेकिन सरकार अपना वायदा भूल गई है। प्राकृतिक आपदा से किसानों को होने वाले नुकसान का उचित मुआवजा देने पर भी सरकार कोई विचार नहीं कर रही है।

एड विश्वजीत रतौनिया ने कहा कि बजट के बाद न तो बेरोजगारी और महंगाई कम होगी और न ही किसानों को एमएसपी मिलेगी और न ही कर्ज मुक्ति होगी…

 

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