जैसी नींद मां की गोद में आती है वैसी नींद, डन्लप के गद्दे पर भी नहीं आ सकती- पंडित शुभम अग्निहोत्री…
श्रीमद्भागवत कथा...

जैसी नींद मां की गोद में आती है वैसी नींद, डन्लप के गद्दे पर भी नहीं आ सकती- पंडित शुभम अग्निहोत्री…
ग्वालियर:- जिला ग्वालियर के मोहना कस्बे में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में में ध्रुव चरित्र सुनाते हुए कहा कि मां के ऋण को संतान कभी भी नहीं उतार सकती है। मां अपने पेट में बच्चे को बच्चे को नौ महीने तक रखती है।जब बच्चा पेट में होता है उस समय मां ठीक प्रकार से खा पी भी नहीं सकती है अपनी खाने की इच्छाओं का दमन करती है। उसके बाद नौ महीने के बाद बच्चे को जन्म देते समय असहनीय पीड़ा को सहन करती है। फिर पालन पोषण करते समय वह अपने बच्चे के हर सुख दुःख का ध्यान रखती है। प्रत्येक प्रिय वस्तु को स्वयं न खाकर बच्चे को खिलाती है। बच्चा जब बिस्तर को गीला कर देता है उस समय भी बच्चे को सूखे में ही सुलाती है चाहे खुद को गीले में सोना पड़े। शास्त्रों में मां का स्थान पिता से भी दस गुना बड़ा बताया गया है। बच्चा जो बात पिता से नहीं कह पाता है वह उसी बात को अपनी मां से बड़ी आसानी से कह लेता है। बच्चे के लिए मां से बढ़कर दुनिया में और कोई हितैषी नहीं हो सकता है।बो मां ही होती है जो सबसे पहले अपनी संतान को संसार का परिचय कराती है,बो मां ही होती है जिसे अपने बच्चे का गोत्र मालूम होता है,बो मां ही होती है जो अपने बच्चे के लिए पूरी दुनिया से लड़ सकती है,बो मां ही होती है जिसकी गोद में बच्चा अपने आप को सबसे अधिक सुरक्षित समझता है,बो मां ही होती है जिसकी गोद में ऐसी नींद आती है जो नींद, नींद की गोली खाने से भी नहीं आती है,बो मां ही होती है जिससे बच्चा अपनी बात को आसानी से कह सकता है,बो मां ही होती है जिस पर बच्चा सबसे अधिक विस्वास करता है। , मां ही संतान की प्रथम गुरू होती है। बो संतान भाग्यशाली होती हैं जिनके माता-पिता होते हैं और बो संतान सौभाग्यशाली होती है जिनको माता पिता की सेवा करने को सौभाग्य प्राप्त होता है अन्यथा दुनिया में न जाने कितने लोग ऐसे होते हैं जो अपने माता-पिता को अपने बचपन में ही खो देते हैं माता पिता न होने की पीड़ा उन लोगों से पूछो जिनके सिर से बचपन से ही माता पिता का साया उठ जाता है।