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साकार ब्रह्म और निराकार ब्रह्म क्या है?:- पंडित राजेश अग्निहोत्री भागवताचार्य

भागवत कथा

साकार ब्रह्म और निराकार ब्रह्म क्या है?:- पंडित राजेश अग्निहोत्री भागवताचार्य

साकार ब्रह्म और निराकार ब्रह्म क्या है? पंडित राजेश अग्निहोत्री भागवताचार्य। दिल्ली के शास्त्री नगर में चल रहे सत्संग में सत्संग का महत्व बताया कि सत्संग एक घड़ी आधी घड़ी आधी में पुनि आध, एक घड़ी चौबीस मिनट की होती है उसका आधा बारह मिनट और उसका भी आधा छ: मिनट होते हैं। अर्थात कोई व्यक्ति छः मिनट का भी सत्संग यदि मन से करें और उसको अपने जीवन में उतार लेता है तो भी उसका उद्धार हो जाता है। साकार ब्रह्म और निराकार ब्रह्म का भागवताचार्य ने बहुत ही आसान तरीके से समझाते हुए कहा कि पानी निराकार है और पानी को पकड़ना बहुत कठिन है। इसी प्रकार निराकार ब्रह्म को पकड़ना कठिन है परन्तु जब हम उसी पानी को किसी बर्तन में भरकर फ्रीज में रखे देते हैं तो वही निराकार पानी बर्फ़ के रूप में साकार बन जाता है और बर्फ़ को हम आसानी से पकड़ सकते हैं इसी प्रकार हम जब निराकार ब्रह्म को भक्ति रूपी बर्तन में भरकर जब ह्रदय रूपी फ्रीज में रखे लेते हैं तो वही निराकार ब्रह्म साकार बन जाता है। प्रभु को पाने के लिए कुछ लोग संत बन जाते हैं।संतों के लिए प्रभु तक पहुंचने का रास्ता आसान होता है। ऐसा नहीं है कि गृहस्थ आश्रम में रहकर प्रभु तक नहीं पहुं है। गृहस्थी भी प्रभु तक पहुंचते हैं परन्तु गृहस्थियों के लिए प्रभु तक पहुंचने का रास्ता कठिन कठिन होता है। जिस प्रकार किसी शहर में दो रास्ते होते हैं एक तो बो जो शहर के बाहर से होकर जाता है जिसे हम बाई पास कहते हैं संतों का रास्ता बाईपास वाला है जिस पर सरपट दौड़ते चले जाते हैं और दूसरा रास्ता जो शहर के अन्दर से जाता है वह रास्ता गृहस्थियों की तरह है जो जाम में फंसे जाता है और जैसे तैसे धीरे-धीरे आगे बढ़ता है क्योंकि गृहस्थियों के लिए अनेक समस्या रूपी ट्रैफिक का जाम मिलता रहता है और वह जाम के जाम में फंसकर बढ़ता रहता है और एक दिन प्रभु को प्राप्त कर ही लेता है। सत्संग में महेश,प्रतीक, श्रीमती सावित्री देवी, दिव्या, राधिका आदि उपस्थित रहे।

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